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मुक्त पंछी फुदकता है
हवा के परों पर
और नीचे को बहता है
झोंके के छोर तक
और अपने पंखों को डुबोता है
सूरज की नारंगी किरणों में
और आकाश पर हक जमाता है।
मगर जो पक्षी पड़ा रहता है
अपने तंग पिंजरे में
शायद ही देख पाए
अपने क्रोध की सलाखों के पार
कट गए हैं उसके पंख
और पाँव जकड़े हैं
तो वह गाने के लिए मुँह खोलता है।
बंदी पक्षी गाता है
डरे हुए स्वर में
अज्ञात बातों के बारे में
मगर जिनकी अब भी चाहत है
और उसकी धुन सुनाई पड़ती है
कहीं बहुत दूर पहाड़ी पर
क्योंकि बंदी पक्षी आजादी का गीत गाता है।
मुक्त पक्षी के ख्यालों में है कोई और समीर
और सरसराते पेड़ों से बहकर आती हवाएँ
और भोर के उजले बगीचे में इंतजार करते मोटे ताजे कीड़े
और आकाश को अपना कहता है।
पर बंदी पक्षी सपनों की कब्रगाह पर है
उसकी छाया चीखती है दुस्वप्न की चीत्कार पर
कट गए हैं उसके पंख और पांव जकड़े हैं
तो वह गाने के लिए मुँह खोलता है।
बंदी पक्षी गाता है
डरे हुए स्वर में
अज्ञात बातों के बारे में
मगर जिनकी अब भी चाहत है
और उसकी धुन सुनाई पड़ती है
कहीं बहुत दूर पहाड़ी पर
क्योंकि बंदी पक्षी आजादी का गीत गाता है।
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